भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बच्चे की ज़िद / शंकरानंद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे कहीं भी रहेंगे तो बोल देंगे
उनका होना
छिप नहीं सकता किसी रहस्य की तरह
किसी जादू की तरह
या किसी भ्रम की तरह

वे इस पृथ्वी पर एक तारा हैं
या उगती हुई धूप
जो तमाम वर्जित जगहों पर पड़ती है
उसी अनुसार बराबर

वे पवित्र ओस हैं पारदर्शी
या किसी भी ऋतु में बारिश का पानी
या नरम हरी घास हैं वे
जिन्हें हर पाबन्दी खल जाती है

वे एक पक्षी हैं
जिन्हें हर बँटवारे से इनकार है और
हर दीवार से घृणा

इस हिंसा द्वेष घृणा और युद्ध से भरी दुनिया में
अब जो आशा है
उन्हीं से है केवल ।