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बच्चों के हाथ से किताबें / महेश सन्तोषी

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मत छीनो-
बच्चों के हाथ से किताबें
उनका बचपन, उनका स्कूल
कागज़ की दो-चार नावें
कागज़ के दो-चार फूल।

मत छीनो-
दूसरों तक आती धूप
दूसरों के हिस्से की रोशनी
वैसे ही चारों तरफ
उजालों की है बहुत कमी

मत छीनो-
लड़खड़ाते बुढ़ापे की
झुकी हुई लाठियाँ
एक बीमार समाज से मिलीं
कमजोर बैसाखियाँ।

मत छीनो।
मत छीनो।