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बजे नगाड़े, बरसे मोती / पद्मा चौगांवकर
Kavita Kosh से
आसमान में
बजे नगाड़े,
या बुढ़िया-
दलती सिंघाड़े!
भूरे काले बादल,
जोर-जोर से
पढ़ें पहाड़े।
झर-झर बूँदें,
बरसे मोती,
बुढ़िया अपनी
चकिया धोती!
या फिर-
कोई छोटी बदली,
कक्षा में
पिटकर है रोती!