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बज्जड़ छींक / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
‘क’ निकलै छै कंठा सें
सूतोॅ जे रं अण्टा सें
‘प’ निकलै छै ठोरोॅ सें
लोर आँखी के कोरोॅ सें।
नाना छीकैं हेने हय्यो
भागी जाय छै पुसू बिलैयो।