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बड़ा सूनापन है तुम्हारे बिना / रविकांत अनमोल
Kavita Kosh से
बड़ा सूनापन है तुम्हारे बिना
उदास आज मन है तुम्हारे बिना
वो ताज़ा हवाओं के झोंके नहीं
अजब सी घुटन है तुम्हारे बिना
नहीं अब वो दर्दे-जुदाई नहीं
मगर इक चुभन है तुम्हारे बिना
बरसते हैं सावन में बादल मगर
तरसते नयन है तुम्हारे बिना
ये सर्दी की ठिठुरी हुई चाँदनी
सुलगती अगन है तुम्हारे बिना
वही ज़िन्दा-जावेद<ref>जीता-जागता</ref> 'अनमोल' है
मगर बेसुख़न<ref>चुपचाप,जो बात नहीं करता</ref> है तुम्हारे बिना
शब्दार्थ
<references/>