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बड़ी सुस्त घडियाँ / विजय वाते
Kavita Kosh से
दीवारों पे दिखती बगावत की घड़ियाँ।
बड़ी सुस्त घड़ियाँ, मुसीबत की घड़ियाँ।
अगर ये खुदा है, तो वे भी खुदा है,
पड़ी मुश्किलों में, इबादत की घड़ियाँ।
मोहब्बत में यारों मिला क्या किसी को,
ये तोहमत की, औ ये शिकायत की घड़ियाँ।
ठनकती हैं अक्सार ही चोटें पुरानी,
कसकती है हर पल अदावत की घड़ियाँ।
जुबां एक बत्तीस दाँतों में जैसे,
मेरे साथ हैं तेरी सोहबत की घड़ियाँ।
दिलों में उतरती हुई पीर 'वाते',
तेरे शेर तेरी वसीयत की घड़ियाँ।