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बड़े शहर के छोटे घर में / सुरेन्द्र सुकुमार

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बड़े शहर के छोटे घर में
जीवन के अनजान सफ़र
जीते रहते हैं हम यारो
इक छोटे — छोटे से डर में

कभी कोई हादसा होता
सुनो तभी हौसला खोता
अनजाने से दुख में डूबे
ख़ुशियों के कुछ पल बोता
दहशत रहती सभी पहर में

इक छोटे — छोटे से डर में

एक टिटहरी चीख़ गई है
अनहोनी सी दीख गई है
अब तो हर दिन हर पल में
एक पढ़ाई सीख गई है
बहुत दर्द रहता है सर में

इक छोटे — छोटे से डर में