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बताएँ और क्या बदला? / जय चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
बताएँ, और क्या बदला
कैलेंडर के सिवा नव वर्ष में?
घोंसले–सा
घर वही दफ्तर वही
पिंजरेनुमा है
वही रोटी, सिर्फ रोटी
ज़िन्दगी का तरजुमा है
बताएँ, और कुछ है क्या
कहीं इसके सिवा नव वर्ष में?
नए सूरज की प्रतीक्षा मे
नज़र
धुँधला गई है
झुर्रियों की भीड़ चेहरे पर
नई कुछ आ गई है
बताएँ, और क्या है नया
इस सच के सिवा नव वर्ष में?
रिस रहे हैं घाव
तन-मन के
सभी अब भी पुराने
सब खड़े मुँह फेरकर
जाएँ कहाँ किसको दिखाने
बताएँ, और क्या है
इस धरोहर के सिवा नव वर्ष में?