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बदल गये मानक / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
आज समझ पर भारी
चारों ओर दिखावे हैं
विज्ञापन ऐसा छाया है
बदल गये मानक
कर्तव्यों के पलड़े ऊपर
भारी चाहें हक
स्वार्थ सिद्धि का लक्ष्य साधते
खूब छलावे हैं
रिश्तों के बल पर रिश्तों को
लूटा जाता है
एक पंथ का बड़ा लुटेरा
हमको भाता है
संबंधों का तार जोड़कर
छलते दावे हैं
हम कौए, कोयल के अंडे
खूब पालते हैं
और हमें वो अपने जैसा खूब
ढालते हैं
देह सियारों की, शेरों जैसे
पहनावे हैं