बदलते विश्व के बारे में / राकेश रेणु
हम सो रहे होंगे
और हमारे सपने में होगी तितली
जब तितलियों के पँश काटे जाएँगे
हम मुस्करा रहे होंगे उनकी रँग-बिरँगी छटा पर
हम सो रहे होंगे
और निगल ली जाएगी पूरी दुनिया
सम्भवतः जागने पर भी करें हम अभिनय सोने का
क्योंकि शेष विश्व सो रहा होगा उस वक़्त
और विश्वधर्म का निर्वाह होगा हमारा पुनीत कर्तव्य
हम सो रहे होंगे और यह होगा
कोई थकी-हारी महिला
निहारेगी दैत्याकार विज्ञापन मुख्य मार्ग पर
और फड़फड़ाएगी अपने मुर्गाबी पँश
हम सो रहे होंगे इस तरह
और किसी की प्रेयसी ग़ुम जाएगी
अचानक किसी दिन किसी की पत्नी
किसी का पति ग़ायब हो जाएगा
किसी का पिता अगली बार
उपग्रह भेजेगा सचित्र समाचार अन्तरिक्ष से
नवीन संस्कृति की उपलब्धियों के —
ये जो ग़ायब हो गए थे अचानक
लटके पाए गए अन्तरिक्ष में त्रिशँकु की तरह
उनकी तस्वीरों की प्रशंसा करेगी पृथ्वी की सत्ता
ड्राइँगरूम में सजाना चाहेंगे उसे लोग
और तिजारत शुरू हो जाएगी
अतृप्त इच्छाओं वाले उलटे लटके लोगों की
हम सो रहे होंगे
और बदल दी जाएगी पूरी दुनिया
इस तरह हमारे सोते-सोते
बहुत देर हो चुकी होगी तब
नींद से जागेंगे जब हम