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बदलते समय की औरतें / किरण मिश्रा
Kavita Kosh से
पुराने समय की औरते
अपने में खोई हुई
गर्दन झुकी हुई
ख़्वाबों का लबादा ओढ़े हुए
ब्रेक लगी गाड़ी की तरह
अपने ठीए पर हिलती-डुलती
पर अन्दर से स्टार्ट
आज की औरते
विशिष्ट ,सुन्दर
उछाल मारती
तेज रफ़्तार गाड़ी
मन-मुताबिक स्टेशन पाती
गन्तव्य पर पहुँचकर
ख़ाली-ख़ाली
झुलसा देने वाली
मन की धूप के साथ अकेली