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बन के गोदनहरी कान्हा चललें जहँवा रहली राधा / महेन्द्र मिश्र

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बन के गोदनहरी कान्हा चललें जहँवा रहली राधा
गउआँ में घूमि के कहे नन्द के ललनवाँ।
केहूँ गोदवाई हो गोदनवाँ।
राधाजी सुन के बोली अपनी केवाड़ी खोली
आवऽ गोदनहरी आवऽ हमरी अंगनवाँ।
हम गोदवाइब हो गोदनवाँ।
कान्हाँ जब धइलें हाथ रधिका ठोकेली माथ,
नारी ना हऊई त हउए मरदानवाँ।
कइसे गोदवाईं हो गोदनवाँ।
भेद जब जनली सखिया कहेलें कन्हइया रसिया
तोहरे कारण भइलीं मरद से जनानवाँ
तनी गोदवावऽ हो गोदनवाँ
कहत महेन्द्र गाई रधिका मने मुसुकाई
राधा अउर कान्हा जी के भइलें मिलनवाँ
केहू गोदवाई हो गोदनवाँ।