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बन तें घर हरि पहुँचे आय / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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बन तें घर हरि पहुँचे आय।
गावत, नाचत, ताल बजावत, आगें-पाछें गाय॥
पीत-हेम-अंबर सुभ सोहत, बन-माला गल राजत।
बिबिध बिचित्र चित्र तनु मंडित, मुरली अधर बिराजत॥
अंग सकल गोधूलि-धूसरित, कुंचित कुंतल सोहत।
गुँथे सुमन नव पल्लव जुत, सिखि-पिच्छ-मुकुट मन मोहत॥
कुंडल मकराकृत स्रुति सोभित, पुष्प कनेर सुरंगी।
अरुनाभा स्यामल कपोल दमकत, दृग बंकिम भंगी॥
रुनझुन-रुनझुन किंकिनि बाजत, नूपुर पग झनकारत।
ब्रज-नव-रमनि निरखि छबि मोहन, बरबस सरबस वारत॥