भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बनारस / अनिमेष मुखर्जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दो प्याली चाय
कुछ किस्से
और तुम्हारी हँसी चखकर
न जाने क्यों
असी की शाम
याद आती है
न तुम साकी
न मैं ग़ालिब
बस बातों-बातों में
ये ज़िन्दगी
बनारस हो जाती है।