भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बन्द’र खुली / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
बन्द’र खुली
किसी आँख है
जकी नै सपनां
कोनी सुवावै ?
शूळ’ र फूल
इसड़ो कुण है
जकै नै ठंडी पून
कोनी भावै ?