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बन्धन / कारमेन जगलाल
Kavita Kosh से
कौर है मुक्त यहाँ
मैं, तू, हा कोई नहीं
हर एक बहाने हैं बन्धन में
जिस से निकलना मुश्किल है।
कहीं रिश्ते का बन्धन
तो कहीं दायित्व का बन्धन
मुक्त हैं कहाँ हम
बस चारों ओर बन्धन ही बन्धन।
कहीं कर्तव्यों का बन्धन
तो कहीं धर्म का बन्धन
मुक्त कोई नहीं है।
बँधे हैं हम सब बन्धन में।