बम्बागढ़ के राजा / सुकुमार राय
सुकुमार रॉय की एक नॉनसेंस वर्स दे रहा हूँ . बंगला में इसे भी 'छडा' ही कहते हैं। अमीर खुसरो के वक़्त में हिन्दी में 'ढकोसला' कहते होंगे। अनुवाद प्रायः अविकल है. केवल तुक के लिए दो शब्द जोड़े हैं।
पता है क्योंकर रखे हुए हैं बम्बागढ़ के राजा
फ्रेम कराकर अपने घर में तले अमावट-खाजा ?
आठ पहर क्यों रानी फिरतीं तकिया सर से बाँधे
ठोंकें कील पावरोटी में उनके भाई राधे !
क्यों ज़ुकाम में सभी यहाँ के लोग गुलाटी मारें
और चाँदनी रात में सदा आँख आलता ढारें ?
खास गवैये रहें लपेटे गले लिहाफ़ बराबर
पण्डित मूड मुण्डाय रसीदी टिकट लगाएँ सर पर I
घड़ी अलारम रखें रात को घी में रोज़ डुबाकर
राजा का बिस्तरा बने काग़ज़ में गोंद लगाकर I
सभा में राजा ज़ोर-ज़ोर से “हुक्का हू” चिल्लाए
राजा की गोदी में बैठा मन्त्री कलश बजाए I
सिंहासन से झूल रही हैं टूटी बोतल-शीशी
कद्दू लेकर क्रिकेट खेलतीं राज बुआ या पीशी I
राजा के चाचा हुक्कों की माला पहने नाचें
कैसे ये सब गज़ब हो रहा कोई ज़रा सा जाँचे I
सुकुमार राय की कविता : बोम्बागड़ेर राजा (বোম্বাগড়ের রাজা) का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित