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बरखा रानी / मुस्कान / रंजना वर्मा

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रिमझिम बरसे बरखा रानी आओ गये गीत रे।
सावन की ये मधुर सुहानी ऋतु ना जाये बीत रे॥

बूंदों की यह रेशम डोरी
बादल का चन्दन पलना,
चिडियाँ सारी लोरी गायें
चुप कर सो जा रे ललना।

साँझ हुई तो लगी छेड़ने झिल्ली भी संगीत रे।
रिमझिम बरसे बरखा रानी अएव गायें गीत रे॥

तोतों का इक झुंड कहीं से
आ उतरा अमराई में।
मेढ़क की टर-टर फिर गूँजी
पानी की गहराई में।

उठा रही है हवा उधर देखो पानी की भीत रे।
रिमझिम बरसे बरखा रानी आओ गायें गीत रे॥

पानी में फिर लगे भीगने
सारे बैग बगीचे।
छोटी नाव बही कागज की
दरवाजे के पीछे।

अगर कहीं यह गयी डूब तो जायेगा जल जीत रे।
रिमझिम बरसे बरखा रानी आओ गायें गीत रे॥