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बरगदों की छाँव बोले / अमरेन्द्र

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बरगदों की छाँव बोले,
आज मेरा गाँव बोले ।

पोखरों में खिल गये हैं
श्वेत-नीले दल कमल के,
खेत की पगडण्डियों से
चैत आया है संभल के;
आ गये हैं झुण्ड बाँधे
कीर, हारिल संग पपीहा,
फूल कैसे खिल पड़े हैं
मुग्ध अलि के बोल ‘आहा’।
ध्यान बँट जाए हमेशा
काग ज्यों ही काँव बोले ।

हो रही चर्चा किसी की
सब इनारों पर बहुत ही,
आज मौसम बावला है
बावली है बहुत रुत ही;
नागकेसर को पता है
क्या कहे मन में चमेली,
गुनगुनाती है हवा भी
बाँस के वन में अकेली;
‘लौट आओ ओ प्रवासी’
आज मेरे पाँव बोले !