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बरवै रामायण/ तुलसीदास / पृष्ठ 9

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( बरवै रामायण सुन्दरकाण्ड )

( पद 36 से 42 तक)

बिरह आगि उर ऊपर जब अधिकाइ।
ए अँखियाँ दोउ बैरति देहिं बुझाइ।36।

डहकनि हैं अजिअरिया निसि नहिं धाम।
जगत जरत अस लागु मोहि बिनु राम।37।

अब जीवन कै है कपि आस न कोइ।
कनगुरिया कै मुदरी कंकन होइ।38।

राम सुजस कर चहुँ जुग होत प्रचार।
असुरन कहँ लखि लागत जग अँधियार।39।

सिय बियोग दुख केहि बिधि कहउँ बखानि।
 फूल बान ते मनसिज बेधत आनि।40।

सरद चाँदनी सँचरत चहुँ दिसि आनि।
बिधुहि जोरि कर बिनवति कुलगुरू जानि।41।

बिबिध बाहिनी बिलसति सहित अनंद।
जलधि सरिस को कहै राम भगवंत।42।

इति बरवै रामायण सुन्दरकाण्ड

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