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बरसात / उमेश पंत
Kavita Kosh से
याद है मुझको वो दिन
तुझसे मिलने का ।
सूरज ने उस दिन
ठंडी-सी बारिश की थी
गर्मी की ।
बर्फ़ भी उस दिन
गर्म हवा-सी छोड़ रही थी।
और तुम्हारे
गोल गुलाबी छाते की सीकों से
बारिश की गुलाबी बूँदें
टपक-टपक कर आती थी
मेरे हाथों में ।
मुझे याद है
वह छोटी-सी बूँद
जिसमें देखा था पहली बार
तेरी परछाई को ।
फिर देखा था
नज़र उठा तेरे चेहरे की ओर ।
काली अलकें काली पलकों से टकराती
भूरी आँखों के उपर लहराती थीं ।
और गुलाबी गालों पर
सुर्ख हुए होंठों पे लहराती
वह चाँदी-सी मुस्कान ।
अगर हवा ने उस दिन
नहीं उड़ाया होता वह बरसाती छाता
एक जादुई इन्द्रधनुष मैं देख ना पाता ।
जान न पाता
इतनी सुन्दर होती है बरसात ।