भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरसात / गरज-गरज शोर करत
Kavita Kosh से
रचनाकार: ?? |
गरज-गरज शोर करत काली घटा, जिया न लागे हमार।
बिजली बन कर चमकती मेरे मन की आग।
आहें मेरी बन गईं न्यारे-न्यारे राग।।
सावन की भीगी है रात, सखी सुन री मेरी तू बात।
है नैनों में आँसुओं की धार, जिया न लागे हमार।। गरज...
मेरे आँसू बरसते लोग कहें बरसात।
पल-पल आवत याद है पिया मिलन की रात।।
कोयल की दरदीली तान सखि दिल में मारत बान।
अब कैसे हो मुझ को करार, जिया न लागे हमार।। गरज...