बरसै छै झमझम / अनिल कुमार झा
खनै खनै बरसै छै झमझम खनै रूकै छै चुप्पे चाप
लटझुमरी बरखां की करतै बड़ी सयानी समझै आप
लोक लाज के डोर न एकरा
केकरोॅ संग ई लिपटै छै
आपनो हठ मनमानी करने
बड़ी बेधड़क चमकै छै
नई बहुरिया रं कखनू यें
सतरंगी चुनरी ओढ़ने
शांत मदिर मुस्कान बिखेरी तानै छै अजगुत रं छाप
खनै खनै बरसै छै झमझम खनै रूकै छै चुप्पे चाप
सच में हमरा रं भूवासी
एकरो हरदम वाट निहारै
एक नज़र पाबे ले एकरो
जीवन के सब सुख ठो बारै
अठखेली ई करतें करतें
धुरी के आबै हाट बजार
हरजाई ई टिकै कहीं नै भरी के मन में शीतल ताप
खनै खनै बरसै छै झमझम खनै रूकै छै चुप्पे चाप
रंग ढंग जौं देखो एकरो
मस्त चाल गजगामिन छै
मोन लुभैने चातक के ई
नेह प्रेम के कामिन छै
दिशा दिशा में शोर मचैनें
आबी आबी नाची के
प्यार धार से रस बरसैने मुक्त करै छै तापस ताप
खनै खनै बरसै छै झमझम खनै रूकै छै चुप्पे चाप।