भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरसो जल / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंतरघट तक
प्यासे
तपते थार को
कुछ तो मिले आधार
बरसो जल
धारदार
आर-पार!

बरसों से सूनी
बिन साथी
पसरी हूं नि:श्छल
पाक प्यार की चाह में
ह्रदयंगम हो जाने
बसलो जल
बार-बार
आर-पार!

तू जो पिघले
पत्ता निकले
ठूंठ हर हो जाए
जीव को मिले आधार
कलंक मरुथल का धुल जाए
उतरो जल
डार-डार
थार-पार।