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बर्फ़ के फाहों की तरह / तुलसी रमण
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नहीं उतरी
एक भी पँखुड़ी
देवदार ने नहीं गाया
सयाळे का कोई गीत
नहीं मंडराये आकाश में
लाल-पीली चिड़ियों के समूह
शहर की बगलों में
चुपचाप घुस आया जाड़ा
अनमना-सा
आता सूरज...
चला जाता
पौष की कटार पर
सोया पड़ा शहर
पाळे की परतों में
सुलग रही आग
आओ...
बर्फ़ के फाहों की तरह
ऊष्मा लेकर आओ
सामने के टीले से
गाना कोई गीत लंबा
पिघल जाएंगी
पाळे की परतें
शें ई ..शें ई .. गायेंगे
झूमेंगे देवदार
दोनों कानों में
उंगलियाँ देकर
शाबा..श बोलूँगा
सीटी बजाउँगा
तुम्हारी लय के
हर स्पंदन को
समेटूँगा
पहले प्यार की तरह