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बस, प्रेम के सिवा / रश्मि भारद्वाज
Kavita Kosh से
आसान है कुछ उजले दिनों में दोहराना
वही उकताए हुए शब्द
जिनमें आँच देह की तीली से सुलगती हो
जल कर तुरन्त बुझ जाने के लिए
जो हो सके तो तुम बस साथ कहना
मन की हर बात कहकर
आस और विश्वास रखना
जब आएँ गीली बारिशें
तुम हरा कहना
जो धूप हो मखमली
तुम जीवन कहना
शीत की उस कँपकपी में
हो ऊष्मा-सी तुम्हारी चाह
पतझड़ के सूखे दिनों में
तुम उम्मीद कहना
जब दिखाई नहीं दे हमारे चमकते चेहरे
घना हो इतना अन्धेरा
हम देख सकें आँखों की नमी
और सुन सकें एक-दूसरे की आवाज़ों का कम्पन
मेरा और तुम्हारा एकान्त
हमारे एकान्त का संगीत बन जाए
तुम राग कहना
तुम साज कहना
हम सब गुनेंगे, सब कहेंगे
बस, प्रेम के सिवा
प्रेम हमें गढ़ लेगा