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बस कलम रह गई साथ / जया झा
Kavita Kosh से
चला गया जो भी आया था, बस क़लम रह गई साथ।
किसी और का वो साया था, धुंधली-सी रह गई याद।
गीत कभी गाए थे मैंने, भूल गई हूँ सुर और ताल
लफ़्ज़ नहीं छूटे मुझसे पर, देते रहे समय को मात।
भाषाएँ सब अलग-अलग, सीखीं और फिर भूल गई,
पर जब जो भी जाना उसमें क़लम चलाते रहे हाथ।
छूट गए सब लोग पुराने, और नज़ारे जान से प्यारे
जब भी पर जो भी देखा, नज़्मों मे सब लिया बांध।