भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस कि मेहमान सुबह-शाम के हैं / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बस कि मेहमान सुबह-शाम के हैं
हम मुसाफ़िर सराय आम के हैं

काम अपना है उनको पहुँचाना
ख़त सभी दूसरों के नाम के हैं

है ये किस शोख़ की गली, यारो!
लोग चलते कलेजा थाम के हैं

जब हमें लौटना नहीं है यहाँ
फिर ये वादे तेरे किस काम के हैं

उनके आने से आ गयी है बहार
वरना हम तो गुलाब नाम के हैं