भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बसंत / श्वेता राय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोकिल के कंठो में छिपकर, नव बसंत तुम आये।
राग पंचमी से रंगो को, धरती पर बिखराये॥

नव पल्लव नव किसलय से अब महकी उपवन गलियाँ।
प्राण पुंज लेकर दिनकर से चटकी प्यारी कलियाँ॥
मंजरियों का रूप धरे तुम अमराई महकाये।
राग पंचमी से रंगो को धरती पर बिखराये॥

गुंजन करते भौरों के दल सुमनों को भरमाते।
यौवन का रस पी फूलों से फिरते हैं मदमाते॥
हवा मधुमयी हो बह बहकर, सबका मन बहकाये।
राग पंचमी से रंगों को धरती पर बिखराये॥

तीसी फूली सरसों फूले, महुआरी मद घोले।
पीत वसन को पहने धरती, कनिया बन कर डोले॥
लाल लाल टेशू अब खिल कर, सबका तन दहकाये।
राग पंचमी से रंगो को धरती पर बिखराये।