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बहने दो एक नदी / प्रमोद कुमार

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पहले उतरने तो दो पानी को
पूरी तरह
फिर भर लेना
तुम भी,

      अभी भर जाने दो ताल-तलैये
बहने दो एक नदी
बगल से,

पानी जहाँ-जहाँ जाएगा
लेता जाएगा तुम्हें भी आकंठ डूबाकर
जड़ों से शुरु कर
शिखर फुनगी तक
तुम्हें माटी से मिला
सुनहली बालियों तक
बालियों से भूख के पहले कौर तक
तुम यह कसा हुआ स्वाद कहीं और नहीं पाओगे,

तुम भर लेना अपना भी
पहले अपनी आँखों के सामने डूब लेने दो तितलियों को
पानी के सारे रंगों में
कि वह दिखे बच्चों में
उन दिनों की तरह
जो केवल बूढ़ों को याद हैं,

तुम किसी छोटी यात्रा पर नहीं निकले हो
उसे आने दो पूरी रौ में
कुछ उसे भी करने दो अपने मन की
तुम हुए उसके उद्गम पर
तो वह प्रपात बन झरेगा तुम पर
और अन्त पर
भर देगा सारे समुद्र तुम्हारे भीतर,
बस अपना भर लेने की
होड़ में न पड़ो
    बाहर छूट जाएँगे सारे विशाल ।