भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहु पद जोरि-जोरि करि गावहिं / जगजीवन
Kavita Kosh से
बहु पद जोरि-जोरि करि गावहिं।
साधन कहा सो काटि-कपटिकै, अपन कहा गोहरावहिं॥
निंदा करहिं विवाद जहाँ-तहँ, वक्ता बडे कहावहिं।
आपु अंध कछु चेतत नाहीं, औरन अर्थ बतावहिं॥
जो कोउ राम का भजन करत हैं, तेहिकाँ कहि भरमावहिं।
माला मुद्रा भेष किये बहु, जग परबोधि पुजावहिं॥
जहँते आये सो सुधि नाहीं, झगरे जन्म गँवावहिं।
'जगजीवन' ते निंदक वादी, वास नर्क महँ पावहिं॥