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बहुत गहरा सन्नाटा / रोज़ा आउसलेण्डर
Kavita Kosh से
कुछ लोग भाग निकले
और बच गए
रात में
वे हाथ थे
लाल ईंटों की तरह
लाल रक्त में डूबे
बहुत शोर भरा था यह नाटक
आग के रंगीन चित्र जैसा
अग्नि-संगीत के साथ
फिर मौत थी मौन
चुप और निस्तब्ध !
सन्नाटा चीख़ रहा था वहाँ
हँस रहे थे सितारे
टहनियों के बीच से
भागे हुए लोग
इन्तज़ार कर रहे थे बन्दरगाह पर
और पानी पर झूल रहे थे पोत
पालने की तरह
माँओं और बच्चों के बिना ।
रूसी भाषा से अनिल जनविजय द्वारा अनूदित