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बहुत पहले से / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
बहुत पहले जब
पक्षियों ने उड़ान भरनी नहीं सीखी थी ।
मनुष्यों की पलकें आज-सी भारी नहीं थी ।
शोर अपने पाँवों तले
कुचलने की ताक़त नहीं रखता था ।
तब से ही शायद या
उससे भी पहले
ठीक-ठीक नहीं मालूम ।
इतिहास का लम्बा सूत्र थामे
और वर्तमान की राह पर खड़ी कह रही हूँ ।
तय था
जब से ही
पत्तों का झरना,
प्रेम का यूँ बरबाद होना,
हसरतों का यूँ जमा होना ।