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बहुत हो गया अब / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
बहुत हो गया अब
चलो साथिया अब।
सुनाऊँगा तुझको
फ़साना नया अब।
सुनूँगा तुझे भी
सुना वाक़या अब।
खुशी के समय तू
न गा मरसिया अब।
खुशी रोज़ देती
मुझे अहलिया अब।
बनाता जो हरिपुर
कहाँ ताज़िया अब।
ग़मों को मिटाता
नहीं साक़िया अब।
जगह लूँ कहाँ मैं
बचा हाशिया अब।
कहीं भी मैं जाऊँ
न लगता ज़िया अब।
है मिलता मुझे भी
नहीं क़ाफिया अब।
तू पहले जो देखा
नहीं खगड़िया अब।
दिया जिसने था कल
उसी ने लिया अब।
जला करता है दिल
न जलता दिया अब।
नहीं रह सकूँगी
तेरे बिन पिया अब।