बाँझ / मोहिनी सिंह
एक बाँझ औरत है
जो बच्चों को पुचकारती नहीं
जिसकी आँखों से नहीं बहती ममता
देखकर फुदकते कदम
नहीं, वो किसी बच्चे को नहीं मारती
पर न ही दुलारतीं
जैसे बच्चे नहीं है उस दुनिया के जहाँ से वो आई है
वहां बस प्रौढ़ बसता है
प्रौढ़ जो मातृत्व को लाँघ के निकल गया है।
वो और बच्चे हमेशा अलग ही रहे
वो कुढ़ती है उन्हें देखकर
धुल में लिपटे
चिढ़ती है उनके शोर से
शैतानियों से
निकलती है बच्चों में हज़ार कमियाँ।
बच्चे उसे अकेला छोड़ भी दें पर
बाँझपन उसे नहीं छोड़ता।
रूखेपन की सख्त चादरें चीर के वो घुस ही जाता है
उसके सीने में
जहाँ आंसू नहीं हैं
एक चीख कैद है
हाँ,उसे बच्चे पसंद नहीं
उसे देखती हूँ और देखती हूँ खुद को
प्रेम को
हाँ, प्रेम वो शिशु है जिसने मेरी कोख से जन्म नहीं लिया
वो भी बाँझ है और मैं भी
एक कठोर रुखी बाँझ!