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बाँस का झुरमुट बजाता सीटियाँ / ऋषभ देव शर्मा

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बाँस का झुरमुट बजाता सीटियाँ
यह हवा सुलगा रही अंगीठियाँ

बुर्ज पर जो चढ़ गए, अंधे हुए
हैं हमारे खून से तर सीढ़ियाँ

कुछ, सिगारों-सिगरटों से पूछतीं
कान में खोंसी हुईं ये बीड़ियाँ

आपने बंजर बनाई जो धरा
जन्मती वह कीकरों की पीढ़ियाँ

पर्वतों पर है धमाकों का समाँ
घाटियों में घनघनाती घंटियाँ