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बाँसुरी की फूँक / नन्दकिशोर नवल

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जिस छिद्र में फूँक भरने से
मेरी बाँसुरी बजती है,
तुमने उसी में फूँक भरी है ।

उस फूँक से जो स्वर निकलेगा,
उससे सारा जंगल हिल उठेगा ।
पक्षी बोल उठेंगे,
हवा चल पड़ेगी,
फूल खिल उठेगा ।

रचनाकाल : 7. 3. 1976