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बाज़ार / शहनाज़ इमरानी
Kavita Kosh से
कम उम्र में बड़ी आमदनी
देता है बी०पी०ओ० का कॉल-सेन्टर
घूमता है सब सेंसेक्स, सेक्स
और मल्टीप्लेक्स के आस-पास
समय का सच
तय करते है बाज़ार और विज्ञापन
पूँजीवाद को बढ़ाता बाज़ार
सिमटी-सकुड़ी बन्धुता
सारे सरोकारों दरकिनार
इनसान की जगह लेती मशीने
मौजूद है हर जगह प्रतिस्पर्धा
चेहरे कितने ही बदल गए हों।