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बाज़ार में खड़े होकर / यतीन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
कभी बाज़ार में खड़े होकर
बाज़ार के खिलाफ़ देखो
उन चीज़ों के खिलाफ़
जिन्हें पाने के लिए आये हो इस तरफ़
ज़रूरतों की गठरी कन्धे से उतार देखो
कोने में खड़े होकर नकली चमक से सजा
तमाशा-ए-असबाब देखो
बाज़ार आए हो कुछ लेकर ही जाना है
सब कुछ पाने की हड़बड़ी के खिलाफ़ देखो
डण्डी मारने वाले का हिसाब और उधार देखो
चैन ख़रीद सको तो ख़रीद लो
बेबसी बेच पाओ तो बेच डालो
किसी की ख़ैर में न सही अपने लिये ही
लेकर हाथ में जलती एक मशाल देखो
कभी बाज़ार में खड़े होकर
बाज़ार के खिलाफ़ देखो.