भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाज़ीगिरी / चंद्र रेखा ढडवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कुछ भी कह कर
कुछ भी करके
पल दो पल में
हँस पड़ना निश्चिंत
भाता था मुझे बहुत
कहूँ ! कैसा लगता है
अब वह उपक्रम तुम्हारा
बेसन में लिपटी
मछली को
उबलते तेल में छोड़
बीड़ी पीते
 तलैया का-सा


बेसन के भीतर छिपी
मछली के साथ
कब सिकुड़ता
कब फटता है वह.