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बाढ़ / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
नहीं पड़े झूले
अमराइयों में इस बार
नहीं झूल पाए कुंआरे सपने
नए ब्याहे अरमान
बहनें बाट जोहतीं रह गईं
तीज पर भाई नहीं आया
सखियों का संग
मेंहदी के रंग
धानी परिधान
माँ के पकवान
सावन कजरी
मल्हार गीत
बागों के झूले
आँसू बनाकर बह निकले
नहीं लौट पाए
परदेश से प्रियतम
रिम-झिम बरसते सावन में
साथ-साथ अलसाने की चाह
बन गयी चातक की आह
नाग देवता को नहीं मिला
इच्छित लावा -दूध
नहीं खोदे गए अखाड़े
गुड़ियों का त्योहार
रह गया धुनता सिर
वे हाथ जो भर देते थे
खलिहान दुकान
इंसान भगवान सबका पेट
पसरे हैं राहत के दानों के
लिए
बाढ़ ने छीन लिए
गाँव-घर से
छोत-छोटे आनंद के क्षण
त्योहार की खुशियाँ।