बाढ़ देखने वाले लोग / स्वप्निल श्रीवास्तव
बाढ़ देखने वाले लोग
पुल पर जमा हो गए हैं
चमकदार कारों में
भरे हुए लोग
आ रहे हैं नदी के पुल पर
देखने के लिए
उफ़नती हुई नदी
वे अपनी पृथ्वी के लोग
नहीं लगते
वे बहुत उत्साह से
देखते हैं नदी की बाढ़
एक-दूसरे से बतियाते हैं
'देखो, दूर डूब गया है गाँव
'देखो, वह देखो
उस पेड़ का केवल सिर दिखाई दे रहा है
'देखो, वह बह रहा है आदमी
बाढ़ उनके लिए मात्र कौतुक है
वे नहीं जानते कि बाढ़
घर से लेकर आदमी की रीढ़
को तोड़ देती है
उसे कर देती है दर-बदर
बाढ़ से मार खाए आदमी को
खड़े होने के लिए
नहीं मिलती एक इंच ज़मीन
घर और फसलों के साथ
बहा ले जाती है
आदमी की जड़ें
आदमी पुन: खड़ा होता है
बाढ़ के खिलाफ़
सैलाब के बाद
खोजता है अपना घर
अपने खेत की
मेंड़ें बनाता़ है
उनमें रोपता है फसलें
और ज़िन्दा रहता है
बाढ़ देखने वाले लोग
तब तक आते रहेंगे
जब तक नहीं आएगी
उनकी ज़िन्दगी में बाढ़
जब तक उनकी नींव में
उत्पन्न नहीं होगी
बाढ़ लाने वाली नदी