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बात नहीं अब सुनता हूं / चन्द्रगत भारती
Kavita Kosh से
उन लम्हों की बात न छेड़ो
पीर बहुत बढ़ जाती है।
भूल पुरानी बातें यारों
नये ख्वाब अब बुनता हूं !
अन्तर्मन को छोड़,नेह की
बात नहीं अब सुनता हूं !
याद तनिक जो आये उनकी
टीस उभर फिर आती है।।
जिन राहों में केवल पत्थर
उन राहों से जाना क्या !
मतलब की इस दुनिया में फिर
गीत प्रेम के गाना क्या !
बात पुरानी मगर कसम से
अन्दर अन्दर खाती है।
छोड़ अकेला चला गया जो
उससे अब कुछ क्या कहना !
शूल चुभाती रातों में अब
भोले सपने क्या बुनना !
मगर सोच सब इन आँखों में।
नाहक बदली छाती है ।
दिल के खालीपन को फिर भी
आज नहीं कल भर लूंगा !
उसके ऊपर आँच न आये
मुश्किल सारी हर लूंगा !
व्यथित जिन्दगी भले आज पर
गीत खुशी के गाती है।