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बात बाक़ी है / पवन कुमार मिश्र
Kavita Kosh से
बूँद आख़िरी ख़त्म हुई होंठो पर प्यास रही बाक़ी,
बंद हुए सब मयख़ाने पीने की आस रही बाक़ी ।
सैय्यादो की बस्ती में पंछी किससे फ़रियाद करे,
फ़रमान मौत का सुना दिया इलज़ाम लगाना है बाक़ी ।
कालिख भरी कोठरी से बेदाग़ गुज़रना मुश्किल है,
अब तक कोरे दामन पर तोहमत का लगना है बाक़ी ।
दावा है उनका पहुँचेंगे इक दिन चाँद-सितारों तक,
लेकिन पहले तय कर लो जो दिलों में दूरी है बाक़ी ।
पूरब में उड़ती हुई घटाओ ! इक दिन मेरे घर आना,
बीत गए सावन कितने पर मेरा आँगन है बाक़ी ।
बूँद आख़िरी ख़त्म हुई होंठों पर प्यास रही बाक़ी,
बंद हुए सब मयख़ाने पीने की आस रही बाक़ी ।