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बातें / केशव
Kavita Kosh से
बड़ी-बड़ी बातों में
छिपी रहती है
छोटा करने की मंशा
जैसे शहतीर के भीतर घुन
छोटी-छोटी बातों में
निर्दोष खुशी
जैसे बच्चे के कंठ में
किलकारी
फिर भी
बड़ी-बड़ी बातों के पीछे
हाल-बेहाल हम
छोटी-छोटी बातों का
सिर्फ भरते दम
जैसे
द्वार खुले
खिड़कियाँ बंद।