भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादल आया है / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दिनों के
बाद गाँव में
बादल आया है

आओ सब मिल
ढोल बजायें
मेघ मल्हारें गायें
करें आरती
बादल जी की
अगरु गन्ध सुलगायें
 
गीले—गीले
सपने लेकर
बादल आया है

घनी साँवरी
अलकों वाली
कई बदलियाँ राँचे
डाँट गरज कर
पथ दिखलाये
गोरी बिजुरी नाचे

वन-बल्लरियाँ
हँसी चहक कर
बादल आया है

लगता आज
मयूरी के भी
सपने पूरे होंगे
प्यासी कोख
बुझे धरती की
साफ कँगूरे होंगे

खिली किसानी
फिर किसान की
बादल आया है