बादल आये रे / रामदरश मिश्र
पानी बरसा धुआँधार फिर बादल आये रे
धन्य धरा का हुआ प्यार, फिर बादल आये रे
धूल चिड़चिड़ी धुली, नहा पत्तियाँ लगीं हँसने
प्रकृति लगी करने सिंगार फिर बादल आये रे
भीगी-भीगी छाँह उड़ रही माँ के आँचल-सी
गला धूप का अहंकार, फिर बादल आये रे
छिपा पत्तियों में पंछी कोई जाने किसको
बुला रहा है बार-बार, फिर बादल आये रे
प्रिया-देश से आने वाली ओ पगली पुरवा
लायी है क्या समाचार, फिर बादल आये रे
जलतरंग बन गयी नदी, उस पर नव-नव तानें
छेड़ रही झुमझुम फुहार फिर बादल आये रे
फूट चली धरती की खुशबू समय थरथराया
लगे काँपने बंद द्वार फिर बादल आये रे
उग आये अंकुर अनंत स्पंदन से भू-तन पर
आँखों में सपने हज़ार फिर बादल आये रे
वन, पर्वत, मैदान सभी गीतों में नहा रहे
आ हम भी छेड़ें मल्हार फिर बादल आये रे