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बादल के पाँव तले / राम करन
Kavita Kosh से
बादल के पाँव तले,
अपनी तो नाव चले।
झिम-झिम-झिम बूंद गिरे,
गाँव-गाँव गली भरे।
शहरों से दूर कहीं,
झींगुर के गाँव चलें।
छप-छप-छप कूद पड़े,
खूब उछल कूद करें।
चप-चप-चप-दौड़-चले
हवा हांव-हांव चले।
पोखर को पार किये,
नाले को धार दिये।
नदिया के गले मिले,
लांघते पड़ाव चले।
उमड़ चले घुमड़ चले,
बादल तुम किधर चले!
आना फिर घूम-घाम,
चाहे जिस ठाँव चले।