भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादल गीत / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादल जी ! बोलो, क्या तुम भी पढ़ने जाया करते हो ?
या फिर केवल गड़-गड़-गड़-गड़ शोर मचाया करते हो ।

सुबह-सुबह मुझको तो मेरी मम्मी रोज़ जगा देती,
अलसाई आँखों से मीठे सपने दूर भगा देती,
देर हुई विद्यालय में तो टीचर अलग सज़ा देती;
कहो, किसी से सज़ा कभी क्या तुम भी पाया करते हो ?

सुनते हैं, तुमको ऊपर से सारी दुनिया दिखती है,
बोलो, क्या सचमुच ऊपर से प्यारी दुनिया दिखती है ?
फूलों जैसी सुन्दर राजकुमारी दुनिया दिखती है;
जिस पर तुम अपने आँचल की ठंडी छाया करते हो ।

नील गगन पर रहते हो तुम तो हो जाते सैलानी,
प्यासी धरती के होठों को छूकर हो जाते पानी,
कभी-कभी तो तुम्हें देखकर होने लगती हैरानी;
इन्द्रधनुष के रंग किस तरह तुम बिखराया करते हो ?