भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादळी / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
बादळी
थूं करसां री
जरूत माथै
क्यूं नीं बरसै
खेतां मांय
स्यात
थूं ई सीखगी
मिनखां दांईं
सुवारथ साधणौ।